Wednesday, June 24, 2015

Ladakh cycling sample post

५ जून की सुबह भी सर्द है| इस बार लदाख़ का अलग ही मौसम देखने का अवसर मिला है| आज का दिन इस साईकिल यात्रा का अहम पड़ाव है| देखा जाए तो लेह में दो से तीन तक ही रूकने का पहले विचार था| पहले जो योजना बनायी थी, वह करगिल- लेह करने के बाद मनाली की ओर जाने की थी|‌ चूँकि अभी भी मनाली रोड़ बन्द है; उसे पोस्टपोन करना पड़ रहा है|‌ दूसरी योजना यह सोची कि त्सोमोरिरी की तरफ जाऊँगा| वहाँ सड़क खुली है| त्सोमोरिरी से एक सड़क त्सो कार होते हुए मनाली- लेह रोड़ को भी मिलती है| इसलिए त्सोमोरिरी जाने से मनालीवाला विकल्प भी खुला रहेगा| लदाख़ी भाषा में त्से का अर्थ गाँव और त्सो का अर्थ सरोवर होता है| लेकिन यहाँ आने के बाद मौसम ने इस योजना पर भी प्रश्नचिह्न लगाया है|

हिमालय समान ऊँचाई के बुद्ध!
स्थानीय लोग बता रहे हैं कि, यहाँ ३३०० मीटर ऊँचाई पर लेह के पास ही इतनी ठण्ड है; तो वहाँ त्सोमोरिरी के रास्ते पर और अधिक होगी| वह सड़क ४५०० मीटर करीब ऊँचाई पर है| और लदाख़ में इस समय इतने बादल और थोड़ी बरसात होना भी ख़राब मौसम का ही‌ संकेत है|‌ और मई के अन्त तक खुलनेवाले मनाली रोड़ के खुलने में भी समय होना इसी तथ्य को दर्शाता है|‌ इसलिए आगे बढ़ने के बजाय यहीं रूकता हुँ| मैने बीस दिन का कार्यक्रम बनाया है; सो मेरे पास अभी भी बहुत दिन है| और तब तक लेह के पास साईकिल चलाता रहूँगा| उसका भी लाभ मिलेगा| शरीर और अभ्यस्त होता जाएगा|
फिर भी पीछली बार मेरे साथ लदाख़ आए मित्र गिरीश से और नीरज जाट जी से बात कर रहा हुँ| गिरीश ने त्सोमोरिरी रोड़ की ऊँचाई‌ का ब्योरा भी बताया| नीरज जाट जी तो कह रहे हैं कि बिल्कुल जा सकते हो| लेकिन जब त्सोमोरिरी रोड़ पर आनेवाले गाँव- हिमिया और चुमाथांग आदि का मौसम देखा तो वहाँ भी बादल छाए हैं| उसके अलावा वहाँ का दिन का तपमान भी माईनस में चल रहा है| दिन में -४ और रात में -१२ से. ! नि:सन्देह मै इतने विषम मौसम के लिए तैयार नही‌ हुँ| मैने जो कल्पना की थी, वह तो गर्मी का मौसम था| अर्थात् लदाख़ में गर्मी का अर्थ होता है कम ऊँचाई पर दिन में १५ से. और रात में ५-७ से. और यही मौसम अधिक ऊँचे स्थानों पर या 'ला' जगहों पर शून्य के करीब आता है; लेकिन अधिकांश जगहों पर शून्य से उपर ही होता है| इस बार सब कुछ अलग है| यही कारण है जिसके वजह से आज मै त्सोमोरिरी के लिए नही‌ निकल पाया हुँ|
अकेले लदाख़ साईकिलिंग करते समय एक बात बिलकुल पक्की थी| अकेले आने में कई पहलू है| लेकिन उनमें‌से सबसे जोखिमभरा पहलू यह है कि स्वयं की भावनाएँ, तनाव और बदलते विचारों का सामना करना| अधिकतर लोग अकेले नही जाना चाहते इसके पीछे एक कारण यह भी होता है कि स्वयं के तनाव का सामना ना करना पड़े| साथी या समूह हो; तो बातें सुलझ जाती हैं; प्रेशर रिलीज होता है| लेकिन अकेले होने में सब का सामना अकेले ही करना होता है और विचार और भावनाओं के कुछ विस्फोट जैसी स्थिति होती है| ऐसी स्थिति पहले दिन साईकिलिंग शुरू करने के ठीक पहले हुई थी| करगिल में मन बुरी तरह आशंकाओं से घिरा था| लेकिन फिर भी अगले दिन आगे बढ़ पाया| वही विस्फोट जैसी स्थिति यही‌ भी अनुभव हो रही है| तरह तरह के विचार और आशंकाओं से मन व्याप्त है| आगे बढ़ू या रूकूँ, मौसम ठीक है या नही है; आगे और ऊँचाई पर जा भी पाऊँगा या नही| ऐसे में मन शान्त रखना; मन में‌ हो रही उथल पुथल देख पाना और स्वयं को उससे अलग रखना चुनौति है| उसमें निर्णय भी लेने है| आते समय पत्थर साहिब गुरुद्वारे में न रूकने का निर्णय लिया और उसका खामियाज़ा भी भुगता| इस बार अधिक सावधान रहना होगा|
आज भी मौसम ऐसा है कि कहीं जाने की इच्छा नही हुई| प्रोद्युतजी के पास ही रहा| लेकिन मन फिर भी अस्वस्थ हो रहा है| मन स्वयं को कोस रहा है, इतनी दूर साईकिलिंग करने के लिए आया हुँ, इतना विश्राम ठीक नही| वैसे तो यह साईकिलिंग प्रोग्राम एक तरह से छुट्टियों का है| फिर भी उसमें भी आदत के अनुरूप मन टारगेट बनाता है; यहीं पर भी वही अपेक्षा रखता है कि आगे जाते रहना चाहिए; रूकना नही चाहिए| योजना के अनुसार आगे बढ़ना चाहिए| फिर सामान्य वर्क लाईफ और छुट्टी में अन्तर ही कहाँ? खैर|
दोपहर को मौसम थोड़ा ठीक लगा तो बाहर निकलना हुआ| आज सिन्धू दर्शन स्थल जा रहा हुँ| चोगलमसर से पास ही‌ है| रास्ते में कई गोंपा भी है| यहीं एक होटल में स्थानीय थुप्का टेस्ट किया| स्थानीय भोजन में माँसाहारी भोजन अधिक है| यहाँ कुछ दिनों बाद सिंधू दर्शन महोत्सव शुरू होगा| उसकी तैयारी जोरों पर है| पीछले साल यहाँ पास ही में कालचक्र २०१४ उत्सव हुआ था| लौटते समय एक गोंपा देखा| भीतर कुछ पूजा अर्चना चल रही है| बाहरी इन्सान भी अन्दर जा कर देख सकते है| यहाँ लामाजी ने बताया कि इस गोंपा में पाली लिपी का प्रयोग होता है| उन्होने बताया कि, लदाख़ ऐसे थोड़े से स्थानों‌ में से एक स्थान है जहाँ भारत में बौद्ध संस्कृति सुरक्षित रही| वरन् बाकी‌ देश ने तो बौद्धों से दूरी बनायी| वाकई यह एक अलग ही तरिके का स्थल है| उल्लेखनीय है कि इस्लामी आक्रमण में नष्ट हुए कई संस्कृत ग्रन्थों की प्रतियाँ तिब्बती भाषा में तिब्बत में सुरक्षित रही| चोगलमसर में और एक बड़ा गोंपा है; लेकिन वह बन्द मिला| वहाँ के लामाजी 'डाउन' में‌ होते हैं, ऐसा बताया गया| महाबोधी इंटरनॅशनल इन्स्टिट्युट ऑफ मेडिटेशन भी देखा|
यहाँ हेल्थ सेंटर में कई लोग आते है| अच्छी बातचीत हुई| सभी अच्छी हिन्दी बोलते हैं| यहाँ सर्दियों में तपमान शून्य से बीस डिग्री नीचे होता है| इसलिए कई लोग 'डाऊन' में- देश के अन्य हिस्सों में- जाना पसन्द करते हैं| यहाँ की आजीविका मुख्य रूप से गर्मी के चार महिनों पर चलती है| जून से अक्तूबर के चार महिनों में लोग अधिक आजीविका प्राप्त करते हैं और उसके बाद सर्दियों के लिए खुद को तैयार करते हैं| सर्दियों में भी कुछ काम चलते हैं- जैसे याक के बालों से पश्मिना शॉल बनाना; उसके कपड़े बनाना आदि| लोगों ने बताया कि यहाँ सर्दियों में रहना हो तो नॉन वेज खाना और किसी ना किसी किस्म की शराब लेना अनिवार्य है| यहाँ लदाख़ी लोग अरक नाम की एक शुद्ध शराब बनाते हैं जो बहुत गर्मी देती है| उसे बनाने की विधि यहाँ किसी को बतायी नही‌ जाती है| याक का मांस भी गर्मी देता है| 'डाऊन' से आने के बाद भी मुझे लदाख़ में शराब या नॉन व्हेज न लेते हुए देख कर लोग चकित हुए| इसके पीछे यह कारण है कि 'डाऊन' से आनेवाले अधिकतर लोग सभी तरह के मज़े करने के लिए ही लदाख़ में आते है| ऐसे लोग किस प्रकार मज़े करते होंगे बताने की आवश्यकता नही है| लदाख़ मे राजनीतिक रूप से देश के अन्य नागरिकों के साथ कोई विवाद नही है; पर पीछले कुछ सालों में पनपे टूरिजम के कारण कुछ तनाव जरुर बने हैं|
आज मात्र दस किलोमीटर ही साईकिल चलाई| आगे की यात्रा के बारे में दुविधा बनी हुई है| अभी कुछ भी कह पाना मुश्किल है| लोग बताते हैं कि यहाँ का मौसम मुंबई की फॅशन जैसा है| कभी भी बदल सकता है| ठीक भी हो सकता है| लेकिन एक बात पक्की कि मै यहाँ आया सहजता से घूमने के लिए हुँ| एक सीमा के आगे जाने के लिए मेरी तैयारी नही है| किसी भी किमत पर या जान की बाज़ी लगा कर या चुनौति स्वीकार कर जाने की मेरी इच्छा नही है| मुझे कुछ प्रूव्ह करना नही है वरन् बस एंजॉय करना है|‌ अगर मेरी तैयारी के भीतर जाना सम्भव होगा; तो जाऊँगा| नही तो शायद नही जा पाऊँगा| आते समय यह ध्यान में था ही कि लदाख़ में मौसम और सड़कों की स्थिति के सम्बन्ध में कुछ भी हो सकता है| कभी भी एव्हलाँच या लँड स्लाईड से सड़क बन्द हो सकती है| अत: जो मिल जाएगा, उसी को मुकद्दर समझना है और जो खो जाएगा उसे भुलाते जाना है यह साफ था| देखते हैं|
सिन्धू दर्शन स्थल
लामाजी
बड़ा सा पर बन्द गोंपा
यह एक छोटे नगर जितना बड़ा अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है|
एक पुस्तक में तिब्बती और संस्कृत भाषा|

Tuesday, June 23, 2015

साईकिल पर जुले लदाख़ भाग ५- सिंधू दर्शन स्थल और गोंपा

५ जून की सुबह भी सर्द है| इस बार लदाख़ का अलग ही मौसम देखने का अवसर मिला है| आज का दिन इस साईकिल यात्रा का अहम पड़ाव है| देखा जाए तो लेह में दो से तीन तक ही रूकने का पहले विचार था| पहले जो योजना बनायी थी, वह करगिल- लेह करने के बाद मनाली की ओर जाने की थी|‌ चूँकि अभी भी मनाली रोड़ बन्द है; उसे पोस्टपोन करना पड़ रहा है|‌ दूसरी योजना यह सोची कि त्सोमोरिरी की तरफ जाऊँगा| वहाँ सड़क खुली है| त्सोमोरिरी से एक सड़क त्सो कार होते हुए मनाली- लेह रोड़ को भी मिलती है| इसलिए त्सोमोरिरी जाने से मनालीवाला विकल्प भी खुला रहेगा| लदाख़ी भाषा में त्से का अर्थ गाँव और त्सो का अर्थ सरोवर होता है| लेकिन यहाँ आने के बाद मौसम ने इस योजना पर भी प्रश्नचिह्न लगाया है|

स्थानीय लोग बता रहे हैं कि, यहाँ ३३०० मीटर ऊँचाई पर लेह के पास ही इतनी ठण्ड है; तो वहाँ त्सोमोरिरी के रास्ते पर और अधिक होगी| वह सड़क ४५०० मीटर करीब ऊँचाई पर है| और लदाख़ में इस समय इतने बादल और थोड़ी बरसात होना भी ख़राब मौसम का ही‌ संकेत है|‌ और मई के अन्त तक खुलनेवाले मनाली रोड़ के खुलने में भी समय होना इसी तथ्य को दर्शाता है|‌ इसलिए आगे बढ़ने के बजाय यहीं रूकता हुँ| मैने बीस दिन का कार्यक्रम बनाया है; सो मेरे पास अभी भी बहुत दिन है| और तब तक लेह के पास साईकिल चलाता रहूँगा| उसका भी लाभ मिलेगा| शरीर और अभ्यस्त होता जाएगा|


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फिर भी पीछली बार मेरे साथ लदाख़ आए मित्र गिरीश से और नीरज जाट जी से बात कर रहा हुँ| गिरीश ने त्सोमोरिरी रोड़ की ऊँचाई‌ का ब्योरा भी बताया| नीरज जाट जी तो कह रहे हैं कि बिल्कुल जा सकते हो| लेकिन जब त्सोमोरिरी रोड़ पर आनेवाले गाँव- हिमिया और चुमाथांग आदि का मौसम देखा तो वहाँ भी बादल छाए हैं| उसके अलावा वहाँ का दिन का तपमान भी माईनस में चल रहा है| दिन में -४ और रात में -१२ से. ! नि:सन्देह मै इतने विषम मौसम के लिए तैयार नही‌ हुँ| मैने जो कल्पना की थी, वह तो गर्मी का मौसम था| अर्थात् लदाख़ में गर्मी का अर्थ होता है कम ऊँचाई पर दिन में १५ से. और रात में ५-७ से. और यही मौसम अधिक ऊँचे स्थानों पर या 'ला' जगहों पर शून्य के करीब आता है; लेकिन अधिकांश जगहों पर शून्य से उपर ही होता है| इस बार सब कुछ अलग है| यही कारण है जिसके वजह से आज मै त्सोमोरिरी के लिए नही‌ निकल पाया हुँ| अकेले लदाख़ साईकिलिंग करते समय एक बात बिलकुल पक्की थी| अकेले आने में कई पहलू है| लेकिन उनमें‌से सबसे जोखिमभरा पहलू यह है कि स्वयं की भावनाएँ, तनाव और बदलते विचारों का सामना करना| अधिकतर लोग अकेले नही जाना चाहते इसके पीछे एक कारण यह भी होता है कि स्वयं के तनाव का सामना ना करना पड़े| साथी या समूह हो; तो बातें सुलझ जाती हैं; प्रेशर रिलीज होता है| लेकिन अकेले होने में सब का सामना अकेले ही करना होता है और विचार और भावनाओं के कुछ विस्फोट जैसी स्थिति होती है| ऐसी स्थिति पहले दिन साईकिलिंग शुरू करने के ठीक पहले हुई थी| करगिल में मन बुरी तरह आशंकाओं से घिरा था| लेकिन फिर भी अगले दिन आगे बढ़ पाया| वही विस्फोट जैसी स्थिति यही‌ भी अनुभव हो रही है| तरह तरह के विचार और आशंकाओं से मन व्याप्त है| आगे बढ़ू या रूकूँ, मौसम ठीक है या नही है; आगे और ऊँचाई पर जा भी पाऊँगा या नही| ऐसे में मन शान्त रखना; मन में‌ हो रही उथल पुथल देख पाना और स्वयं को उससे अलग रखना चुनौति है| उसमें निर्णय भी लेने हैं| आते समय पत्थर साहिब गुरुद्वारे में न रूकने का निर्णय लिया और उसका खामियाज़ा भी भुगता| इस बार अधिक सावधान रहना होगा|

आज भी मौसम ऐसा है कि कहीं जाने की इच्छा नही हुई| प्रोद्युतजी के पास ही रहा| लेकिन मन फिर भी अस्वस्थ हो रहा है| मन स्वयं को कोस रहा है, इतनी दूर साईकिलिंग करने के लिए आया हुँ, इतना विश्राम ठीक नही| वैसे तो यह साईकिलिंग प्रोग्राम एक तरह से छुट्टियों का है| फिर भी उसमें भी आदत के अनुरूप मन टारगेट बनाता है; यहीं पर भी वही अपेक्षा रखता है कि आगे जाते रहना चाहिए; रूकना नही चाहिए| योजना के अनुसार आगे बढ़ना चाहिए| फिर सामान्य वर्क लाईफ और छुट्टी में अन्तर ही कहाँ? खैर| दोपहर को मौसम थोड़ा ठीक लगा तो बाहर निकलना हुआ| आज सिन्धू दर्शन स्थल जा रहा हुँ| चोगलमसर से पास ही‌ है| रास्ते में कई गोंपा भी है| यहीं एक होटल में स्थानीय थुप्का टेस्ट किया| स्थानीय भोजन में माँसाहारी भोजन अधिक है| यहाँ कुछ दिनों बाद सिंधू दर्शन महोत्सव शुरू होगा| उसकी तैयारी जोरों पर है| पीछले साल यहाँ पास ही में कालचक्र २०१४ उत्सव हुआ था| लौटते समय एक गोंपा देखा| भीतर कुछ पूजा अर्चना चल रही है| बाहरी इन्सान भी अन्दर जा कर देख सकते हैं| यहाँ लामाजी ने बताया कि इस गोंपा में पाली लिपी का प्रयोग होता है| उन्होने बताया कि, लदाख़ ऐसे थोड़े से स्थानों‌ में से एक स्थान है जहाँ भारत में बौद्ध संस्कृति सुरक्षित रही| वरन् बाकी‌ देश ने तो बौद्धों से दूरी बनायी| वाकई यह एक अलग ही तरिके का स्थल है| उल्लेखनीय है कि इस्लामी आक्रमण में नष्ट हुए कई संस्कृत ग्रन्थों की प्रतियाँ तिब्बती भाषा में तिब्बत में सुरक्षित रही| चोगलमसर में और एक बड़ा गोंपा है; लेकिन वह बन्द मिला| वहाँ के लामाजी 'डाउन' में‌ होते हैं, ऐसा बताया गया| महाबोधी इंटरनॅशनल इन्स्टिट्युट ऑफ मेडिटेशन भी देखा|

यहाँ हेल्थ सेंटर में कई लोग आते हैं| अच्छी बातचीत हुई| सभी अच्छी हिन्दी बोलते हैं| यहाँ सर्दियों में तपमान शून्य से बीस डिग्री नीचे होता है| इसलिए कई लोग 'डाऊन' में- देश के अन्य हिस्सों में- जाना पसन्द करते हैं| यहाँ की आजीविका मुख्य रूप से गर्मी के चार महिनों पर चलती है| जून से अक्तूबर के चार महिनों में लोग अधिक आजीविका प्राप्त करते हैं और उसके बाद सर्दियों के लिए खुद को तैयार करते हैं| सर्दियों में भी कुछ काम चलते हैं- जैसे याक के बालों से पश्मिना शॉल बनाना; उसके कपड़े बनाना आदि| लोगों ने बताया कि यहाँ सर्दियों में रहना हो तो नॉन वेज खाना और किसी ना किसी किस्म की शराब लेना अनिवार्य है| यहाँ लदाख़ी लोग अरक नाम की एक शुद्ध शराब बनाते हैं जो बहुत गर्मी देती है| उसे बनाने की विधि यहाँ किसी को बतायी नही‌ जाती है| याक का मांस भी गर्मी देता है| 'डाऊन' से आने के बाद भी मुझे लदाख़ में शराब या नॉन व्हेज न लेते हुए देख कर लोग चकित हुए| इसके पीछे यह कारण है कि 'डाऊन' से आनेवाले अधिकतर लोग सभी तरह के मज़े करने के लिए ही लदाख़ में आते हैं| ऐसे लोग किस प्रकार मज़े करते होंगे बताने की आवश्यकता नही है| लदाख़ में राजनीतिक रूप से देश के अन्य नागरिकों के साथ कोई विवाद नही है; पर पीछले कुछ सालों में पनपे टूरिजम के कारण कुछ तनाव जरुर बने हैं| आज मात्र दस किलोमीटर ही साईकिल चलाई| आगे की यात्रा के बारे में दुविधा बनी हुई है| अभी कुछ भी कह पाना मुश्किल है| लोग बताते हैं कि यहाँ का मौसम मुंबई की फॅशन जैसा है| कभी भी बदल सकता है| ठीक भी हो सकता है| लेकिन एक बात पक्की कि मै यहाँ आया सहजता से घूमने के लिए हुँ| एक सीमा के आगे जाने के लिए मेरी तैयारी नही है| किसी भी किमत पर या जान की बाज़ी लगा कर या चुनौति स्वीकार कर जाने की मेरी इच्छा नही है| मुझे कुछ प्रूव्ह करना नही है वरन् बस एंजॉय करना है|‌ अगर मेरी तैयारी के भीतर जाना सम्भव होगा; तो जाऊँगा| नही तो शायद नही जा पाऊँगा| आते समय यह ध्यान में था ही कि लदाख़ में मौसम और सड़कों की स्थिति के सम्बन्ध में कुछ भी हो सकता है| कभी भी एव्हलाँच या लँड स्लाईड से सड़क बन्द हो सकती है| अत: जो मिल जाएगा, उसी को मुकद्दर समझना है और जो खो जाएगा उसे भुलाते जाना है यह साफ था| देखते हैं|